उत्तराखंड में शिक्षकों के मुख्यालय से बाहर निवास करने की चर्चाएं यूं तो हमेशा से ही सुनाई देती थी लेकिन टिहरी जिलाधिकारी के आदेश ने इस प्रकरण को सुर्खियों में ला दिया है. खास बात यह है कि शिक्षक संगठन ने भी अब इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए व्यवहारिक तर्क रखने की कोशिश की है. उधर अधिकारी भी इस मामले में पहले से ही नियम होने की बात कहते सुनाई दे रहे हैं.
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में बाकी विभागों की तरह ही शिक्षकों की कोशिश मैदानी जिलों में पोस्टिंग की होती है. जाहिर है कि सभी शिक्षकों को मैदानी जिलों में पोस्टिंग नहीं मिल सकती और तमाम शिक्षक दुर्गम और अति दुर्गम क्षेत्रों में भी तैनात किए जाते हैं. यहां से एक नई समस्या इस बात को लेकर खड़ी होती है कि यह शिक्षक विद्यालय से कई किलोमीटर दूर शहरी क्षेत्र से रोज सफर करके दुर्गम क्षेत्र के विद्यालय में पढ़ने पहुंचते हैं, जिससे उनके विद्यालय पहुंचने और गुणवत्ता परक पठन-पाठन का कार्य करने पर सवाल खड़े होते हैं.
इसी स्थिति को देखते हुए टिहरी में प्रकरण जिलाधिकारी के संज्ञान में आने के बाद जिलाधिकारी ने शिक्षकों के विद्यालय से 8 किलोमीटर के दायरे में ही रहने के निर्देश दे दिए. जिस पर अब बहस भी तेज हो गई है. टिहरी की जिलाधिकारी नितिका खंडेलवाल से इस पर ईटीवी भारत संवाददाता से बातचीत करते हुए कहा कि उनका यह आदेश सर्विस रेगुलेशन में पहले से ही मौजूद नियम से जुड़ा है. यही नहीं भवन आवंटन के नियम भी शिक्षक को आवंटित भवन में ही रहने के लिए बाध्य करते हैं.
राज्य में सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था पर हमेशा सवाल खड़े होते रहे हैं और सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के कारण पठन-पाठन का कार्य भी प्रभावित होता रहा है, उधर कई जगह शिक्षक दुर्गम क्षेत्र में मौजूद विद्यालय की विषम भौगोलिक स्थिति से बचने के लिए दूसरे जिले से भी रोजमर्रा के रूप में बेहद ज्यादा दूरी तय करने के बाद विद्यालय पहुंचते हैं. देहरादून से टिहरी के विद्यालय या चकराता से लेकर हरिद्वार तक भी शिक्षक पहुंचते हैं.
इस स्थिति में चिंता इस बात को लेकर होती है कि जब शिक्षक विद्यालय पहुंचने से पहले इतनी लंबी यात्रा करेगा तो वह विद्यालय में बच्चों को किस तरह से गुणवत्ता परक शिक्षा दे पाएगा. साथ ही समय पर विद्यालय पहुंचने को लेकर भी दिक्कतें होना स्वाभाविक है. खास बात यह है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी भी टिहरी जिलाधिकारी के फैसले के समर्थन में खड़े दिखाई देते हैं.
इस मामले में कार्मिक विभाग का भी आदेश है, जिसमें किसी भी कार्मिक को बिना अनुमति के मुख्यालय नहीं छोड़ना होता है. यानी इस क्षेत्र में रहना होता है जहां वह कार्यरत है. तमाम नियम होने के बावजूद भी केवल इनका अनुपालन नहीं हो पा रहा है और शायद यही कारण है कि अब इस तरह की समस्याएं भी खुले जनता दरबार में अफसरों के सामने पहुंच रही है.